Disclaimer: यह लेख किसी धर्म, राजनीतिक दल या किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का उद्देश्य नहीं रखता है, बल्कि तथ्यों को साझा करने और समाधान को सम्भव बनाने की दिशा में हम सबको एक साथ आने और सहयोग करने का प्रयास करता है।

भारत में गाय को माता का दर्जा दिया जाता है और बैल को भगवान शिव का वाहन माना जाता है। हम इन जानवरों को पूजनीय मानते हैं, लेकिन क्या हम वास्तव में उनके प्रति दयालु हैं?

लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि ये जानवर कहाँ से आते हैं? क्या उनकी इस दशा के लिए हम मनुष्य पूरी तरह से निर्दोष हैं?

धर्म और व्यवहार में अंतर:

हमारी संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। शिव मंदिरों में नंदी की पूजा की जाती है। बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि इन प्राणियों का सम्मान करना चाहिए। लेकिन जरा गौर करें, क्या हम अपने व्यवहार में ये शिक्षाएं उतार पाते हैं? हमारे शहरों की सड़कों पर घूमते ये गाय, बैल, – क्या ये वही पवित्र प्राणी हैं जिनकी हम पूजा करते हैं? क्या उन्हें खुले में पड़े सड़ते हुए कचरे और प्लास्टिक के ढेरों में भोजन ढूंढने के लिए मजबूर होना चाहिए?

बेज़ुबान जानवरों की पीड़ा:

  • दूध देने की क्षमता खोने पर उन्हें बेसहारा छोड़ दिया जाता है।
  • खुले में घूमते हुए, वे कचरा और प्लास्टिक खाकर जीवित रहने को मजबूर हैं।
  • सड़कों पर वाहनों से टकराने का खतरा बना रहता है।
  • कई बार उन्हें बीमारियों का शिकार होना पड़ता है।
  • कृषि कार्यों में उपयोगिता समाप्त होने पर बैल को बेकार समझा जाता है।
  • सड़कों पर घूमते हुए भोजन और पानी की तलाश करते रहते हैं।
  • कई बार उन्हें क्रूरता का शिकार होना पड़ता है।

गाय और बछड़े (माँ और बच्चे ) का बेजुबान दर्द:

  • गाय गर्भवती होगी, 9 महीने एक खूंटे से बांधकर रहेगी और बच्चे को जन्म देगी ताकि आपको दूध दे सके।
  • मान लीजिए, गाय को नर बछड़ा हुआ। जैसा कि हम मनुष्यों में, माँ और बच्चे की देखभाल की जाती है। क्या इन बेजुबान प्राणियों को वैसी देखभाल नहीं मिलनी चाहिए?
  • नर बछड़ा हुआ, गौ माता उसे प्यार से अपने सामने बड़ा होता देखना चाहती है। और दूध का व्यापार करने वाला उसे एक बूंद दूध भी नहीं देता। और बछड़े को पहले ही उसकी माँ से छीन लिया जाता है।
  • क्या आपने कभी गाय-बैल के नर-मादा अनुपात का डेटा (Statistical Data) देखा है? माना जाता है कि गाय बहुत भावुक और देखभाल करने वाली होती है, माँ होने के नाते क्या आप उसके दर्द को महसूस कर सकते हैं, उसकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति कैसी होगी?
    अगर कोई कहता है कि हमारी डेयरी, गौशाला में या हमारे घर में अच्छी देखभाल होती है। वे लोग कब से व्यवसाय कर रहे हैं, तो फिर वहां खुद जाकर देखें कि कितने बैल हैं और कुल कितनी गायें हैं। सभी जवाब खुद मिल जाएंगे
    क्या आपने कभी सोचा है कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की यह परंपरा कहां से आई? क्या आपने कभी सोचा है कि जिस दूध से मैं शिव जी को खुश करने की कोशिश कर रहा हूं, वह किसी गाय या बछड़े को दुखी करके तो नहीं आया?
  • अच्छा, आप पीते हैं, चढ़ाते नहीं। तो जिस बच्चे का वह दूध था, उसे तो नहीं मिला, आपको जरूर चाहिए।

समस्या का समाधान: एक सामूहिक प्रयास

आवारा जानवरों की समस्या का समाधान सिर्फ सरकार या किसी एक संगठन के प्रयासों से नहीं हो सकता। यह एक जटिल मुद्दा है, जिसके समाधान के लिए समाज के सभी वर्गों को मिलकर काम करना होगा।

मानवीय दायित्व:

  • गाय और बैल को सड़कों पर घूमने से रोकने के लिए उचित व्यवस्था करनी होगी।
  • गौशालाओं और आश्रय स्थलों में उनकी देखभाल की व्यवस्था करनी होगी। नर और मादा जानवरों के बीच लिंग अनुपात को संतुलित करने के लिए प्रयास करने होंगे।
  • जानवरों के प्रति दया और करुणा भावना को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाना होगा।

विरोधाभास:

  • हम गाय को माता मानते हैं, लेकिन उन्हें कूड़े में भोजन ढूंढने के लिए मजबूर करते हैं।
  • हम बैल को भगवान शिव का वाहन मानते हैं, लेकिन उन्हें सड़कों पर बेसहारा छोड़ देते हैं।
  • हम धर्म में दया और करुणा की बात करते हैं, लेकिन जानवरों के प्रति क्रूरता करते हैं।

आवश्यकता:

  • हमें अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा।
  • हमें अपनी संस्कृति के मूल्यों का पालन करते हुए जानवरों के प्रति दयालु व्यवहार करना होगा।
  • हमें यह समझना होगा कि वे भी जीवित प्राणी हैं और उन्हें भी जीवन जीने का अधिकार है।

निष्कर्ष:

गाय और बैल हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। हमें उनकी देखभाल करना और उन्हें सम्मान देना हमारा दायित्व है। क्या हम सचमुच गाय को माता मानते हैं? क्या हम सचमुच बैल को पूजनीय मानते हैं? यदि हम वास्तव में नंदी की पूजा करते हैं, तो हमें नंदी के प्रति दयालु और उदार होना चाहिए। वास्तविक भक्ति तो हमारे कर्मों में झलकनी चाहिए।

यह प्रश्न हमारे विवेक और चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगाता है। क्या हम वास्तव में दयालु और करुणामय हैं? यह एक गंभीर विषय है, जिस पर हमें विचार करना चाहिए।

आइए, हम सब मिलकर इस विरोधाभास को मिटाएं और गाय और बैल के प्रति अपनी दयालुता और करुणा भावना को व्यक्त करें।

यह ही सच्ची भक्ति है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *