” वटवृक्ष ” !
माँ, बचपन में हम सबको ले जाती ननिहाल,
सब भाई बहन खेलते मिलजुल कर,
अक्सर हार जीत के लिए हो जाती लड़ाई,
अपनी अपनी बहन चुन लेते भाई,
कुरूक्षेत्र मैदान हो जाता तैयार,
घनघोर वाक् युद्ध छिड़ जाता, बड़ा मज़ा आता।
कभी मामी मासी नानी,
आकर ” यह क्या हो रहा है। ” ? लगा कर डांट,
चल देती मां से खूब गप्पें लगाती!
नाना जी का था रोब बड़ा,
उनके आते ही छा जाता सन्नाटा,
हर कोई बन जाता सीधा साधा।
मामाजी ले जाते बाजार,
लड़ाई भूल हम सब हो जाते एक साथ!
ननिहाल में ” मैं ” थी सबसे बड़ी बहन,
मेरी हर नादानियां कर लेते बहन,
शायद, सब जानते थे ” बहन ” होती पराया धन!
गोबर लिपे आंगन में चिड़िया दाना चुगती रहती,
मेरे आते फुर्र से। उड़ जाती,
मुर्गा अपनी कलगी पर इठलाता,
पेड़ पर बैठा कौआ कांव-कांव बोल कर उसे चिढ़ाता,
चबूतरे की लगी तुलसी हंसती,
कहां गई वह छोटी सी बस्ती जिसमें रहते नाना नानी?
उम्र के चौथे पड़ाव में रिश्तों की अहमियत समझ पाई,
पर सर से ऊपर निकल गया पानी।
” स्नेह बंधन ” से अमूल्य कुछ नहीं।
राखी के धागों ने, भाभीयों की निश्चल मुस्कान में,
जीवन नौका मंथर गति से लग पाई किनारे,
धन्यवाद के साथ, क्षमा मांगती हूं अपनी ऋटियों के लिए।
🙏 वटवृक्ष है मेरा ननिहाल, दे रहा सबको आशीर्वाद।
बरसती रहे शुभकामनाओं की बरसात!
कल्पनाओं में ” आशा ” लगा रही गोते,
ऐसे ही सभी का जीवन सफर ” आनंद ” से गुजरे ! 🌺🌸 सा खिले।
आशीर्वाद मेरा, कृपा प्रभु की आपकी आशा दीदी।
२१ – ८ -२०२४
Poetess/Author: Mrs. Asha Nagpal
Books Written by Author: दो रंग
https://www.amazon.in/Rang-Asha-Nagpal-Sameer-Bhatia/dp/8173294380
Brings beautiful emotions as it takes us all down the memory lane – of childhood and family bonding.